रांची। झारखंड के गांवों में धानरोपनी खत्म हो गई है। धरती हरी-भरी है। किसान खुश हैं। अब सभी करम परब पर विधि करमा पूजन के जरिए प्रकृति का आभार व्यक्त कर रहे हैं। राज्य भर में प्रकृति पर्व करमा की धूम नजर आ रही है। राजधानी रांची में भी जगह जगह करम पूजा के लिए अखड़ा की विशेष साज-सज्जा की गई है। कुंआरी कन्याएं दिनभर का व्रत रखकर करम देव की पूजा अर्चना कर रही है। बहनें करमदेव से अपने भाई की सुख-समृद्धि की कामना कर रही है। विधि विधान से अखड़ों में करम डाली स्थापित पूजा अर्चना की जा रही है। पाहनों द्वारा विभिन्न अखड़ों में पूजा अर्चना करायी जा रही है। देशवासियों और राज्यवासियों की खुशहाली के लिए लाल मुर्गे की बलि दी गयी। पाहन (पुजारी) ने करम-धरम की कथा सुनायी। पूजा के बाद खुशियां मनाते हुए रात भर अखड़ा में नृत्य संगीत का दौर चल रहा है।
कारोना संक्रमण के कारण दो साल करमा पूजा सादगी से मनाया जा सका था। ऐसे में इस बार पर्व को लेकर दोगुना उत्साह नजर आया। राजधानी रांची में सभी अखड़ा में पूजा की गयी। मुख्यरूप से हातमा, सिरमटोली, करमटोली, वीमेंस कॉलेज, आदिवासी हास्टल, हरमू, डंगराटोली, वर्धमान कंपाउंड, तिरिल, डेलाटोली, अरगोड़ा, पुंदाग, लालपुर, लोवाडीह, बसर टोली, चुटिया और तुपूदाना सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भव्य रूप से पूजा की गयी।
राजधानी में मुख्य पाहन जगलाल पाहन ने रांची के हातमा अखड़ा में पूजा करायी। मुख्य पाहन जागलाल पाहन का कहना है कि करमा पूजा एकता और भाईचारगी के साथ जीवन जीने की सीख देता है। करम-धरम की कथा में सामूहिकता का पाठ विद्यामान है। सभी वर्गों को मिलजुल कर अपनीअपनी तरक्की का संदेश देता है। आज समाज में ईर्ष्या-द्वेष काफी बढ़ गया है। करमा पूजा में शामिल हों तो कथा जरूर सुने। कथा सुनकर उसको अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उतारें।

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