April 24, 2024

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जलवायु परिवर्त्तनः बारिश की मात्रा में नहीं आयी, बरसात के दिन कम हो गये

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दामोदर-स्वर्णरेखा समेत 13 नदियों के 5किमी किनारे में पेड़ लगाने की योजना
रांची। दीपावली के मौके पर देशभर में पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की चर्चा हो रही है, लेकिन पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन में यह अनुभव किया है कि हाल के वर्षां या दशकों में यह जलवायु परिवर्त्तन (Climate change) से गर्मी, बारिश और जाड़े का मौसम अपनी निर्धारित अवधि से खिसकता जा रहा हैं। वहीं देशभर के विभिन्न हिस्सों में पानी की किल्लत भी महसूस हो रही हैं। परंतु सच्चाई इसके विपरीत है। वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन और शोध में यह बात सामने आयी है कि देश भर में बारिश की मात्रा में कमी नहीं आयी है,बल्कि बरसात के दिन कम हो गये हैं।

एक्कीफर का निर्माण सही तरी से नहीं हो रहा हैं

रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान के वैज्ञानिक और निदेशक डॉ0 नितिन कुलकर्णी का कहना है कि झारखंड समेत देश के अन्य हिस्सों में बारिश की मात्रा में कमी नहीं आयी है, बल्कि बरसात के दिन घट गये है। पहले जितनी बारिश तीन महीने में होती थी, उतनी ही बारिश एक महीने या डेढ़-दो महीने में हो जा रही हैं, जिसके कारण बारिश का सारा पानी बहकर निकल जा रहा है, यह ठीक तरीके से जमीन के अंदर नहीं जा रहा हैं, जिसके कारण एक्कीफर (भूमिगत जल परत) का निर्माण ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा हैं।

नमामि गंगे की तरह देश की प्रमुख 13 नदियों के लिए भी बनेगी परियोजना

भूमिगत जलस्तर को बनाये रखने के लिए ही केंद्र सरकार ने नमामि गंगे परियोजन की तरह ही देश की प्रमुख 13 नदियों के पांच किमी किनारे में पेड़ लगाने का निर्णय है। इसमें झारखंड की दो प्रमुख नदियां दामोदर और सुवर्णरेखा नदी भी शामिल हैं। नदियों के किनारे पड़ लग जाने पेड़ के तनों से बारिश का पानी जमीन के अंदर जा सकेगा और भविष्य के एक्कीफर का निर्माण होने से पीने के लिए पानी या कृषि कार्य के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।

जनजातीय समाज के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में प्रयास
झारखंड समेत देश भर के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले जनजातीय समाज की एक बड़ी आबादी का जीविकोपार्जन मुख्य रूप से जंगलों पर आधारित होता हैं। वनोत्पाद आदिवासी समाज के आर्थिक संवर्धन का मुख्य जरिया हैं। केंद्र सरकार भी वनोपज के माध्यम से जनजातीय समाज के आय में बढ़ोत्तरी के प्रयास में जुटी हैं, वहीं रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान निरंतर अनुसंधान और प्रशिक्षण के माध्यम से ग्रामीणों के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में कार्यरत हैं।
रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान के लैब में पौधे के टिसू और मिट्टी की उर्वरा शक्ति का अध्ययन कर रहे ये वैज्ञानिक ना सिर्फ पेड़-पौधों की गुणवत्ता में निरंतर सुधार के लिए प्रयासरत है, बल्कि किसानों की आय बढ़ोत्तरी की दिशा में भी कार्यरत हैं। संस्थान के निदेशक डॉ0 नितिन कुलकर्णी का कहना है कि वन क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों और जनजातीय समाज को अच्छी प्रजाति की गुणवत्तापूर्ण पेड़-पौधे उपलब्ध कराकर उनकी आय में बढ़ोत्तरी की दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा हैं।

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