December 13, 2025

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झारखंड में क्या फिर बदलने वाली है सियासी तस्वीर? पाला बदलने की फितरत है पुरानी

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असंतुष्ट विधायकों की वजह से वर्ष 2000 से अब तक पांच बार अचानक हो चुका है सत्ता परिवर्त्तन
रांची। झारखंड में एक बार फिर से सियासी तस्वीर बदलने की चर्चा हो चुकी है। सूबे में राजनीतिक पाला बदलने की फितरत काफी पुरानी रही है और असंतुष्ट विधायकों की वजह से वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य गठन के वक्त बाद से राज्य में अब तक पांच बार अचानक सत्ता परिवर्त्तन हो चुका है। अब एक बार फिर से सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और मुख्य विपक्षी दल बीजेपी की ओर से एक-दूसरे के विधायकों के टूट का दावा किया जा रहा है।

2003 में बाबूलाल मरांडी ने विधायकों की नाराजगी को किया था दरकिनार

15नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य गठन के वक्त बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बीजेपी-जदयू और अन्य सहयोगी दलों की सरकार बनी। करीब ढ़ाई साल के बाद सरकार में शामिल जदयू के लालचंद महतो, मधु सिंह, रामचंद्र केसरी ,रमेश सिंह मुंडा और वनांचल कांग्रेस के समरेश सिंह ने तत्कालीन स्पीकर इंदरसिंह नामधारी के साथ मिलकर बगावत कर दी। इस दौरान सरकार को बाबूलाल मरांडी सरकार बचाने के लिए स्पीकर इंदर सिंह नामधारी से मंत्रणा करते और उनके माध्यम से बाबूलाल मरांडी की सारी चाल की जानकारी असंतुष्टों को मिल जाती थी। इंदर सिंह नामधारी असंतुष्ट को आगे कर जेएमएम-कांग्रेस के सहयोग से खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। अंततः बाबूलाल मरांडी को सत्ता छोड़नी पड़ी। लेकिन इंदर सिंह नामधारी का भी सीएम बनने का सपना अधूरा रह गया। बीजेपी ने असंतुष्टों की मांग को स्वीकार करते हुए बाबूलाल मरांडी की जगह 18 मार्च 2003 को अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बना दिया।

2005 के चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने से निर्दलीय का रहा दबदबा

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी, जेएमएम या कांग्रेस में किसी एक दल या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। वहीं इस दौरान निर्दलीय विधायक के रूप में मधु कोड़ा, एनोस एक्का, हरिनारायण, भानू प्रताप शाही, एनसीपी के कमलेश कुमार सिंह और कुछ अन्य छोटे दलों का दबदबा रहा। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस का शासन रहने की वजह से किसी तरह से जेएमएम-कांग्रेस ने मिलकर शिबू सोरेन के नेतृत्व में 2 मार्च 2005 को सरकार बना ली, लेकिन सारे निर्दलीय विधायक को लेकर बीजेपी विशेष विमान से राजस्थान और अन्य दूसरे राज्यों में ले गयी, अंततः शिबू सोरेन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाये और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में 12 मार्च 2005 को फिर से बीजेपी की सरकार बनी।

निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने बीजेपी को दी मात
वर्ष 2005 में जिस तरह से विशेष विमान से बीजेपी नेतृत्व ने निर्दलीय और अन्य छोटे दलों को झारखंड से बाहर ले जाकर शिबू सोरेन की सरकार को 9 दिनों में ही इस्तीफा देने को विवश कर दिया था, ठीक उसी अंदाज में इस बार नेतृत्व परिवर्त्तन की कमान निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने संभाली। मधु कोड़ा अपने साथ निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर दिल्ली चले गये और अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देने के लिए विवश कर दिया।  14 सितंबर 2006 को मधु कोड़ा ने निर्दलीय विधायक के रूप में ही कांग्रेस-जेएमएम के सहयोग से सरकार बनायी। लेकिन करीब 23 महीने तक सरकार बनाने के बाद जेएमएम ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लेने का निर्णय लिया।   शिबू सोरेन के नेतृत्व मंे 27 अगस्त 2008 को जेएमएम-कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की सरकार बन गयी।

उपचुनाव में शिबू सोरेन की हार के बाद राष्ट्रपति शासन
जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार ने विधानसभा में अपना बहुमत तो सिद्ध कर दिया, लेकिन उस वक्त शिबू सोरेन सांसद थे और उनका विधानसभा चुनाव जीतना जरूरी था। इसी दौरान तमाड़ के जदयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की नक्सलियों ने हत्या कर दी। उपचुनाव में शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक गढ़ संताल परगना की जगह तमाड़ से ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, लेकिन उन्हें निर्दलीय गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से पराजित कर दिया। जिसके कारण शिबू सोरेन को करीब पांच महीने बाद 18 जनवरी 2009 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना पड़ा और झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू।

अर्जुन मुंडा ने जेएमएम के सहयोग से सरकार बनायी
राष्ट्रपति शासन में ही वर्ष 2009 में विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार भी किसी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। जिसके कारण बीजेपी और जेएमएम को एक मंच पर आना पड़ा। अर्जुन मुंडा 11 सितंबर 2010 को मुख्यमंत्री बने और हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री। लेकिन यह सरकार भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। 18 जनवरी 2013 को जेएमएम ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन वापस ले लिया और राज्य में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। फिर करीब छह महीने तक राष्ट्रपति शासन रहने के बाद हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कांग्रेस और अन्य दलों एवं निर्दलीय विधायकों के समर्थन से जेएमएम की सरकार बनी।

रघुवर दास कार्यकाल पूरा करने वाले पहले सीएम बने
वर्ष 2014 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जिसके बाद रघुवर दास के नेतृत्व में आजसू पार्टी और अन्य विधायकों के सहयोग से 28दिसंबर 2014 को बीजेपी की सरकार बनी और 5 वर्षाें का अपना कार्यकाल पूरा किया।

जेवीएम के 6 विधायकों ने की बगावत
रघुवर दास सरकार ने बीजेपी और आजसू पार्टी समेत अन्य निर्दलीयों के समर्थन से सरकार तो बना ली। लेकिन उन्होंने वह भूल नहीं की, जो पूर्व की सरकारों ने की थी। अपनी सरकार को सुदृढ़ करने के लिए रघुवर दास ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम के 8 में से छह विधायकों को अपने पाले में मिला और उनमें से दो को मंत्री भी बना दिया। जिसके कारण उनकी सरकार 5 सालों तक पूरी मजबूती के साथ चली।
हेमंत सोरेन सरकार को अभी 51 विधायकों समर्थन, पर बगावत की आशंका बनी चिंता का सबब
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 24 विधायकों में सिमट गयी और जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वहीं जेएमएम के 30, कांग्रेस के 16, आरजेडी के 1, भाकपा-माले के 1, एनसीपी के 1 और निर्दलीय सरयू राय को भी हेमंत सोरेन को समर्थन मिला। वहीं कुछ ही दिनों बाद जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया, जबकि जेवीएम के दो अन्य विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गये। इस तरह से बीजेपी विधायकों की संख्या बढ़कर 25 और कांग्रेस के 18 विधायक हो गये। मौजूदा अंकगणित के अनुसार हेमंत सोरेन सरकार को कोई खतरा नहीं हैं। परंतु जिस तरह से जेएमएम और कांग्रेस के कुछ विधायकों की नाराजगी की खबरें आ रही है, उसने हेमंत सोरेन सरकार के भविष्य पर कई सवालीय निशान खड़ा करने का काम किया है।



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