रांची। झारखंड के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य मे 5सितंबर को विधानसभा द्वारा नवम मानसून सत्र के ही क्रम मे एक दिन का सत्र बुलाया गया है। यूपीए सरकार के मुखिया ने इसी दिन सदन मे विश्वास मत का प्रस्ताव पेश करने की अपनी इच्छा से विधानसभा सचिवालय को अवगत कराया है।
संसदीय मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि विश्वास मत का प्रस्ताव सरकार के लिए सदन मे बहुमत साबित करने का एक संवैधानिक तंत्र है। यह विधानसभा मे मुख्यमंत्री और लोकसभा मे प्रधानमंत्री द्वारा पेश किया जाता है। इसके साथ जोखिम यह है कि यदि सदन मे विश्वास मत का प्रस्ताव गिर जाता है तो इसका परिणाम सरकार के पतन मे होता है। मालूम हो कि विश्वास मत का प्रस्ताव सरकार द्वारा अपने बहुमत को साबित करने के लिए लाया जाता है ।
विधानसभा स्पीकर जब प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे तो सदन मे चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष के सदस्यों को अपनी बातें रखने का मौका मिलता है। विश्वास मत का प्रस्ताव विधानसभा मे राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा पेश किया जाता है।सरकार के बने रहने के लिए विश्वास मत का पारित होना जरूरी रहता है। विश्वास प्रस्ताव मे मतदान के दौरान सदन मे यदि सरकार सामान्य बहुमत हासिल न कर पाये तो सरकार को इस्तीफा देना होता है या फिर विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश की जा सकती है। हालांकि झारखंड मे ऐसी स्थिति की संभावना अभी नही है ।
सरकार द्वारा विश्वास मत लाने के निर्णय पर लोग तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह निर्णय राज्य की साढे तीन करोड़ जनता को आश्वस्त करने के लिए लाया गया प्रतीत होता जिसमें वो राज्य की जनता को बताना चाहते हैं कि बहुमत उनके साथ हैऔर विरोधियों द्वारा किये जाने वाले उठापटक की कोई साजिश सफल नही होने वाली है। विश्वास मत प्राप्त कर लेने के 6महीने तक कोई अविश्वास का प्रस्ताव नही लाया जा सकता यह सही नही है ।
विश्वास मत प्राप्त कर लेने के 15दिन बाद भी कोई वैसी स्थिति निर्मित होती है तो विपक्ष नो कानफिडेंस मोशन ला सकता है या माननीय राज्यपाल विश्वास का मत हासिल करने का निदेश मुख्यमंत्री को दे सकते हैं ।
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