रांची। प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन, पासवा ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि राज्य सरकार एक अध्यादेश लाये, जिसमें सरकारी शिक्षकों को अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना होगा। साथ ही साथ शिक्षक जिस स्कूल में पदस्थापित है, उनके बच्चे उसी स्कूल में पढ़ना चाहिए, जो शिक्षक ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें तत्काल बर्खास्त करना चाहिए। शिक्षक अपने बच्चों को खुद सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे, तो आम जनता भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला देगी।
पासवा के प्रदेश अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे ने कहा कि पासवा की ओर से जिलाध्यक्षों और प्रखंड अध्यक्षों के माध्यम से अभिभावकों को जोड़ कर उड़न दस्ता तैयार किया गया है। साथ ही संचार एवं सूचना तकनीक के इस दौर में संगठन के पदाधिकारी सरकारी स्कूलों में जाएंगे और वहीं से वीडियो जारी करेंगे। यह आज कड़वी सच्चाई बन चुकी है कि प्राइवेट स्कूल बच्चों को पढ़ाते है, जबकि सरकारी स्कूलों में फर्जी काम हो रहे हैं। दाल-भात पकाओ, खाओ, दस-दस, बीस-बीस साल से शिक्षक एक ही जगह पर पदस्थापित है और स्कूल भी नहीं जाते हैं। कई प्राचार्यां और शिक्षा के अधिकारियों के खुद के भी प्राइवेट स्कूल हैं, जिसकी सूची जल्द ही जारी की जाएगी।
पासवा के प्रदेश उपाध्यक्ष लाल किशोरनाथ शाहदेव ने कहा कि बगल के राज्य बिहार में माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार से जानकारी मांगी है कि बड़े अधिकारी और सरकारी मुलाजिमों के कितने बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते है। झारखंड में भी पासवा की ओर से जनहित याचिका दायर कर जानकारी मांगी जाएगी। उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूल के खिलाफ नेतागिरी करने वाले और बयानबाजी करने वाले लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला कराना चाहिए, फिर प्राइवेट स्कूलों के बोले, अन्यथा उन्हें प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
पासवा के प्रदेश महासचिव डॉ0 राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि मुख्यमंत्री से अनुरोध है कि सरकारी स्कूलों पर अरबों रुपये खर्च होते है कि वह जनता के टैक्स का पैसा होता है, लेकिन राज्य में सरकारी स्कूलों की स्थितियां क्या है, इस पर सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरुरत है। 17 महीने पूरे कोरोना काल में सरकारी शिक्षकों ने वेतन लिया और क से कबूतर भी नहीं पढ़ाया, आज जब सच्चाई की बात हो रही है, तो वे तिलमिला रहे हैं।
पासवा ने आम जनता से भी अनुरोध करती है कि सरकारी स्कूलों पर नजर रखे और पता करें कि कितने बच्चे स्कूल आते हैं, पढ़ाई होती है और मिड डे मिल की क्या स्थिति है। संगठन की ओर से मुख्यमंत्री से यह भी मांग की जाती है कि उन शिक्षकों की संपत्तियों की भी जांच की जाए, जो पढ़ाते कम और नेतागिरी ज्यादा करते हैं। पासवा सरकारी स्कूलों में पढ़ाने उन शिक्षकों को भी सलाम करता है, तो तमाम अनियमितता और भ्रष्टाचार के बावजूद खुद को व्यवस्था से अलग बनाये हुए रखे है और अपने व्यक्तिगत प्रयास से बच्चों के भविष्य को गढ़ने में जुटे हैं।
पासवा ने कहा कि मुख्यमंत्री असर की उस रिपोर्ट की का भी अध्ययन करें, जिसमें पांचवीं के 34 फीसदी बच्चों के ही दूसरी का पाठ पढ़ पाने की बात सामने आयी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आठवीं के 56 फीसदी बच्चों को भाग देने नहीं आता है और कक्षा तीन के 17 फीसदी बच्चों को अक्षर ज्ञान नहीं किया है।
More Stories
झारखंड खेल नीति 2022 का लोकार्पण, सीएम ने कहा- खिलाड़ियों को न्यूनतम 50 हजार सम्मान राशि मिलनी चाहिए
शिबू सोरेन परिवार ने 250 करोड़ रुपये की 108 परिसंपत्ति का साम्राज्य खड़ा कियाः बाबूलाल
धनबाद एसएसपी की मौन सहमति से कोयले का अवैध खनन-परिवहन धड़ल्ले से जारी-सीता सोरेन