रांची । बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने रविवार को खुँटी जिले के कुंदी पंचायत स्थित आदिवासी बहुल डुंगटोली बस्ती गाँव का भ्रमण किया और किसान गोष्ठी में भाग लिया. उन्होंने आदिवासी किसानों द्वारा ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग एवं मल्टीटीयर्स तकनीकों से सब्जी एवं फलों की खेतों का अवलोकन किया. किसानों की समस्याओं को जाना और खेती की भावी संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया. समाजसेवी सेंदल टोपनो के नेतृत्व में आदिवासी किसानों के दल के आग्रह पर कुलपति ने डुंगटोली बस्ती गाँव का रविवार को दौरा किया.
मौके पर आयोजित किसान गोष्ठी में पारंपरिक ढंग से आदिवासी महिलाओं ने कुलपति का स्वागत किया. किसान गोष्ठी को संबोधित करते हुए कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि आदिवासी बहुल डुंगटोली बस्ती गाँव में लाभकारी कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. सीमित संसाधनों के बावजुद गाँव के किसान खुद से ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग एवं मल्टीटीयर्स तकनीकों से आधुनिक कृषि को अपना रहे है. स्थानीय आदिवासी किसान काफी मेहनती है और इन्हें बदलते कृषि परिवेश में अद्यतन कृषि तकनीकी मार्गदर्शन एवं सहायता की जरूरत है.
कुलपति ने डुंगटोली बस्ती गाँव का कृषि आधारित डाटाबेस तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया. ताकि गाँव में कृषि के विभिन्न उद्यम क्षेत्रों में किसानों की अभिरूचि के अनुरूप तकनीकी हंस्तान्तरण को बढ़ावा देकर ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके. उन्होंने स्थानीय महिलाओं को कृषि उत्पाद प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन से जुड़ने की सलाह दी. किसानों को खरीफ एवं रबी फसलों की तकनीकी तथा पशुपालन एवं कृषि वानिकी विषय पर वैज्ञानिकों द्वारा हरसंभव तकनीकी मार्गदर्शन तथा प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध करने की बात कही. चालु गरमा मौसम में तरबूज, मक्का एवं 60-65 दिनों की अवधि वाली लत्तरदार सब्जी की खेती करने की सलाह दी.
मौके पर केवीके वैज्ञानिक डॉ बंधनु उराँव ने ग्रामीण विकास में पशुपालन के क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि से सूकरपालन, बकरीपालन, मुर्गीपालन, गायपालन आदि का प्रबंधन एवं लाभों से अवगत कराया. उन्होंने गाँव में पशुओं की नियमित चिकित्सा शिविर एवं टीकाकरण के महत्त्व पर जोर दिया.
ग्रामप्रधान संगल कमल ने बताया कि डुंगटोली बस्ती गाँव की आबादी करीब 700 है. इस बस्ती के 200 परिवारों में करीब 185 परिवार आदिवासी मुंडा समाज से है. गाँव की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है. स्थानीय किसान काफी मेहनती है. जल संरक्षण योजनाओं की कमी तथा अद्यतन लाभकारी कृषि तकनीकी जानकारी के आभाव से वंचित होने की वजह से किसानों को खेती-किसानी से बेहतर लाभ नहीं मिल पा रहा है.
समाजसेवी सेंदल टोपनो ने कहा कि स्थानीय क्षेत्र में लाह की खेती तथा नई तकनीकी आधारित बेर, आँवला, अमरुद, केला फलों की खेती की काफी संभावनाएँ है. किसानों को जल संरक्षण तकनीकी के साथ खरीफ एवं रबी फसलों की उन्नत तकनीकी एवं उन्नत फसल किस्मों की उपलब्धता सुनिश्चित कर गाँव का विकास को गति दी जा सकती है.
मौके पर एचएन दास, रंजित सिंह के अलावा लादू सांगा, परसा सांगा, मार्गाे सांगा, मुन्ना सांगा, दीपानी देवी, बिरसी देवी, रमिया देवी एवं शानिचारिया देवी सहित करीब 50 किसानों ने गोष्ठी में भाग लिया.
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