रांची। राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि शास्त्रीय संगीत न केवल हमारी आत्मा को सुकून प्रदान करता है बल्कि हमारे दिमाग को उन तरीकों से विकसित करता है जो हाल के वर्षों में असंख्य अध्ययनों से प्रमाणित हुए हैं।
लोक संगीत आमतौर पर स्थानीय समारोहों में देखा जाता है और यह सामूहिक भावना के साथ प्रदर्शित किया जाता है। यद्यपि इसकी एक समृद्ध ऐतिहासिक परंपरा है। शास्त्रीय संगीत लोक धुनों और रूपों से प्रेरित है जिसमें गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता देखी जाती है।
राज्यपाल रमेश बैस आज पंडित चंद्र कुमार मलिक मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा एमेटी विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित बिरसा मुंडा संगीत एवं नृत्य समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह ट्रस्ट विगत 16 वर्षों से देश के विभिन्न हिस्सों में संगीत व नृत्य समारोहों का आयोजन कर समृद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य रूपों को प्रोत्साहित कर रहा है और इसके माध्यम से देश के युवा उभरते संगीतकार प्रोत्साहित होते हैं और उन्हें मंच प्रदान किया जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति में संगीत की प्रधानता है। पारंपरिक सौंदर्यशास्त्र में, संगीत को अक्सर ’आत्मीय भोजन’ के रूप में माना गया है। यह भारत की उल्लेखनीय व समृद्ध सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक दृष्टि से विविधता का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत एक समृद्ध विरासत है। इसकी उत्पत्ति लगभग 6,000 साल पहले पवित्र वैदिक शास्त्रों से हुई थी, जहां मंत्रों में संगीत की ध्वनि व ताल की लयबद्ध प्रणाली विकसित थी। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में संगीत की समृद्ध प्रणाली रही है। भारतीय महाकाव्यों यथा रामायण और महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन में संगीत की एक विशिष्ट भूमिका रही है। यह मनोरंजन का साधन होने के साथ शारीरिक और मानसिक रूप से व्यक्ति को स्वस्थ बनाये रखने में भी सहायता करता है और ऊर्जा का संचार करता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में गीत, वाद्य और नृत्य का समावेश है। भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रकृति से बहुत घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। प्राकृतिक घटनाओं से प्रेरित मौसम और समय सहित ’राग’ व संगीत ध्वनि हेतु ’ताल’ बनाने के लिए उन्हें संहिताबद्ध किया गया है।
राज्यपाल संगीत सीखना आसान नहीं है। संगीत सीखने के लिए मन की एकाग्रता, लगन, धैर्य चाहिए। साथ ही साथ लम्बे समय तक रियाज की भी आवश्यकता होती है। उन्होंने संगीत की कोई जाति, धर्म व सीमा नहीं होती। जब किसी भी कार्यक्रम में संगीत बजता है, स्वाभाविक है श्रोता अपने हाथ या पैर को थिरकने से नहीं रोक सकते। वे अपने को संगीत की लय में बहने देते हैं। शास्त्रीय संगीत हमारी सभ्यता में निहित विचारों को व्यक्त करता है। अपने संगीत के माध्यम से, संगीतकार उस समाज और उस समय की तस्वीर पेश करते हैं जिसमें वे रहते थे। संगीत की रचनाएँ व संरचना प्रत्येक कलाकार को उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु पूर्णतः प्रेरित करता है। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया, वैसे-वैसे बेहतर संगीत उपकरण और शास्त्रीय संगीत की नई-नई शैलियाँ होती गई। शास्त्रीय संगीत को घरानों से जाना जाने लगा। छत्तीसगढ़ से भी एक घराना को रायगढ़ घराने के नाम से जाना जाता है। राज्यपाल ने कहा कि भगवान ने भी हमें पक्षियों की चहचहाहट, जानवरों की गर्जना, बादलों की गर्जना, पवन की सरसराहट जैसे प्राकृतिक संगीत का उपहार दिया है। विभिन्न वाद्ययंत्रों और रागों की मदद से मनुष्य ने भी मानव निर्मित संगीत तैयार किया है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र ने भी साबित किया है कि मधुर संगीत में अनिद्रा, अवसाद, चिंता, तनाव और विभिन्न रोगों को ठीक करने की शक्ति है। शोध से पता चला है की पशु-पक्षियों पर भी असर करता है। गाय या भैस का दूध निकालते समय संगीत बजाकर दूध निकालना जाय तो दोनों ज्यादा दूध देती हैं।
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