रांची। 8फरवरी से चालू आर बी आई की तीन दिवसीय पालिसी बैठक में मुद्रा स्फीति के दबाव को नियंत्रित करने की दिशा में कई अहम फैसले लिये जा सकते हैं।
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि मानेटरी पॉलिसी कमिटी की यह द्विमासिक बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब देश में मंहगाई बढ़ाने वाले कई कारक चिंता बढ़ा रहे हैं। यूनियन बजट ने अगले वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार द्वारा बाजार से ली जाने वाली उधार की बड़ी मात्रा को रेखांकित किया है। दूसरी बात कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ रही है और तीसरी बात अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व द्वारा मार्च माह की बैठक मे ब्याज दरों के बढ़ाने कि स्पष्ट संकेत मिले है, जबकि खुद आर बी आई द्वारा कराये गये सर्वक्षण में नवम्बर 2021में मंहगाई के रिकॉर्ड स्तर पर पंहुचने की बात की है।
10फरवरी को आर बी आई के गवर्नर जब पालिसी स्टेटमेंट जारी करेंगे तो यह बहुत संभव है कि अर्थव्यवस्था के लिए अब तक मददगार रही नरम मौद्रिक नीति की दिशा मे बदलाव की औपचारिक शुरुआत हो और सख्त मौद्रिक नीति की ओर बढने के संकेतो को हल्की शुरुआत दिखलाई पड़े । सख्त मौद्रिक नीति की दिशा मे बढ़ने के हल्के संकेत के रुप में रिवर्स रेपो रेट मे 20 से 25 आधार अंकों की बढ़ोतरी का निर्णय मौद्रिक समिति ले सकती है ।
क्या है रिवर्स रेपो रेट ?
देश के बैंक जब अपने अतिरिक्त कैश को आर बी आई मे छोटी अवधि ज्यादातर ओवरनाइट के लिए जमा करते हैं तो आर बी आई जो ब्याज बैंकों को उनके जमा पर देती है उसे रिवर्स रेपो रेट के रूप मे जाना जाता है। इसके विपरीत जब बैंकों को उधार लेने की जरूरत पड़ती है तो आर बी आई जिस ब्याज दर पर बैंकों को उधारी देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। अभी रेपो रेट मे बदलाव नही करेगा क्योंकि यह ज्यादा आक्रामक उपाय हो जायेगा और अभी इसकी जरूरत इसलिए भी नही है कि खुदरा मंहगाई अभी स्वीकार्य उच्चतम स्तर 6 प्रतिशत से नीचे 5.59 प्रतिशत पर हुई।
आर बी आई रेपो रेट मे किसी तरह की बढ़ोतरी के लिए उस समय तक कि इंतजार करेगा जब तक कि खुदरा मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत को पार नही कर जाती और फेड रिजर्व के बढे ब्याज दरों का देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन नही हो जाता। रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने का उद्देश्य सिस्टम मे मुद्रा की आपूर्ति कम कर मंहगाई पर नियंत्रण पाने की दिशा की ओर बढ़ना ।
ग्रोथ के प्रति सकारात्मक रहते हुए मौद्रिक पालिसी समिति को मूल्य स्थिरता की पहली जिम्मेदारी के प्रति ज्यादा जबाबदेह पूर्ण फैसले लेने का समय अब आ गया है ।
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