January 10, 2025

view point Jharkhand

View Point Jharkhand

सदन को सरकार के कोष पर नियंत्रण की वित्तीय शक्ति संविधान प्रदत्त-सूर्यकांत शुक्ला

Spread the love

रांची। झारखंड सरकार का सलाना बजट आगामी वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए पारण की विधायी प्रक्रियाओं से गुजर रहा हैं। 3 मार्च को आगामी वित्त वर्ष का बजट जिसे संविधान में वार्षिक वित्तीय विवरणी बताया गया है, का उपस्थापन विधानसभा के सदन पटल पर वित्तमंत्री डॉ0 रामेश्वर उरांव के बजट भाषण के साथ कर दिया गया है।
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने बताया कि बजट पर सामान्य चर्चा के उपरांत 7 मार्च से विभिन्न विभागों की मांगों पर जिसे बजट की शब्दावली में ‘अनुदान की मांग’ कहा गया है, सदन से मत प्राप्त करने की प्रक्रिया चल रही हैं। अनुदान मांग पर 23 मार्च तक 10 विभिन्न तिथियों पर चर्चा होगी।
अनुदान मांग में मंत्रालय की वह राशि शामिल होती हैं, जिसे आगामी वित्त वर्ष में होने वाले समग्र खर्चाें की पूर्ति के लिए आकलित किया गया है और वार्षिक वित्तीय विवरणी में शामिल कर लिया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 203 में राज्य के विभिन्न मंत्रालयों की मांग पर सदन यानी विधानसभा से अनुदान प्राप्त करने की संवैधानिक अनिवार्यता का उल्लेख है। विधानसभा को यह वित्तीय शक्ति प्राप्त है कि सरकार द्वारा जो व्यय के आकलन सदन में प्रस्तुत किये गये हैं, उन पर विचार कर अनुमति दें या अमान्य कर दें। यह एक तरह से जनता द्वारा चुने जनप्रतिनिधियों की सभा विधानसभा को सरकार के कोष पर नियंत्रण की वित्तीय शक्ति संविधान ने प्रदान की हैं।
23 मार्च तक विभागवार अनुदानों की मांग पर विधानसभा से अनुमति प्राप्त कर लेने के बाद एक विनियोग विधेयक लाया जाएगा। जिसमें सभी अनुदानित मांगों की राशि का कुल योग रहेगा और भारित व्यय के रूप में वह राशि भी रहेगी। जिस पर विधानसभा के मत की जरुरत नहीं होगी। विनियोग विधेयक पारित होने के बाद ही राज्य की संचित निधि से सरकार को राशि की निकासी और खर्च करने की अधिकारिता मिल जाती है।
अनुदान की मांग का प्रस्ताव सरकार के मंत्री सदन मे लेकर आते हैं जो संबंधित मंत्रालय के जरूरी खर्चों की पूर्ति के लिए आवश्यक राशि की मांग होती है जिस पर सदन की स्वीकृति लेना जरूरी होता है। अनुदान की मांग पर चर्चा की शुरुआत करने के लिए विपक्ष के सदस्य कटौती प्रस्ताव लेकर आते हैं। सरकार द्वारा राशि की मांग पर विपक्ष के सदस्यों का कटौती प्रस्ताव लाना एक तरह से संसदीय व्यवस्था का एक विधायी उपकरण है जिसके माध्यम से सदन मे बहस की शुरुआत की जाती है। मांगकर्ता सरकार को स्वभाविक रुप से जितना सौम्य और विनीत होना चाहिए उतना व्यवहार मे कहीं दिखाई नही देता हैं । सत्ता पक्ष को अपने संख्या बल का गुरुर कहीं न कहीं विनीत और सौम्य होने से रोकता है।

About Post Author