November 22, 2024

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अब हर कृषि के अलावा वन क्षेत्रों के लिए भी बनेगा फॉरेस्ट हेल्थ कार्ड

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मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाकर हरियाली बढ़ाने की कोशिश
रांची। केंद्र सरकार ने किसानों की उपज बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ वर्ष स्वाइल हेल्थ कार्ड बनाने की योजना की शुरुआत की थी, लेकिन एग्रिकल्चर के बाद जो वन क्षेत्र की भूमि बच गयी, उस जमीन की जांच के लिए अब फॉरेस्ट हेल्थ कार्ड बनाने का काम शुरू किया गय है। रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान ने इस दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया हैं।

वन क्षेत्रों में पौधरोपण के लिए मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की कोशिश
रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान की ओर से फॉरेस्ट लैंड के हेल्थ कार्ड बनाने की योजना शुरुआत की गयी है। संस्थान के चीफ टेक्निकल ऑफिसर शंभूनाथ मिश्रा का मानना है कि फॉरेस्ट लैंड हेल्थ कार्ड के माध्यम से मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है, ताकि वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी में सहायता मिल सके।

पौधरोपण के लिए जैविक खाद उपलब्ध कराने की सलाह
संस्थान के एक अन्य युवा वैज्ञानिक का कहना है कि मृदा प्रयोगशाला के माध्यम से वन क्षेत्र की मिट्टी का गहनता से अध्ययन किया जाता है और फिर उस मिट्टी की क्षमता के अनुरूप पौधे लगाने की सलाह दी जाती है और जरूरत के मुताबिक पौधरोपण के लिए आवश्यक जैविक खाद उपलब्ध कराने की सलाह दी जाती हैं।

मिट्टी में प्राइमरी,सेकेंडरी एवं माइक्रो न्यूटेंट और हैवी मेटल की जांच
फॉरेस्ट लैंड की मिट्टी में उपलब्ध प्राइमरी न्यूटेंट, सेकेंडरी न्यूटेंट, माइक्रो न्यूटेंट और हैवी मेटल की जांच कर गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक सुझाव दिये जाते हैं, इससे हाल के वर्षों में पौधों के अंकुरण की प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई है और हरियाली में भी वृद्धि दर्ज की गयी हैं।

टिशू कल्चरः कम स्पेश- कम टाइम में पौधे के अधिक क्लोन तैयार
फॉरेस्ट एरिया में बढ़ोत्तरी के लिए अब टिशू कल्चर तकनीक की अधिक से अधिक मदद ली जा रही है। रांची स्थित वन उत्पादकता संस्थान में इसके माध्यम से ऐसे छोटे पौध तैयार किये जा रहे है, जो किसी भी तरह कीट और रोग से मुक्त है और इन पौधों के अंकुरण और विकसित होने का प्रतिशत अधिक होता है।  

कीट-रोग मुक्त रहने से पौधों के अंकुरण और विकसित होने का प्रतिशत अधिक

जंगल में पौधरोपण एक कठिन कार्य और काफी खर्चिला होता है। ऐसे में पौधरोपण के बाद अधिक संख्या में पौधे विकसित हो, इस दिशा में वन उत्पादकता संस्थान के वैज्ञानिक निरंतर नये-नये अनुसंधान में जुटे हैं और टिशू कल्चर तकनीक से इस कार्य में बड़ी सफलता मिल रही है। संस्थान के वैज्ञानिक अनिमेश सिन्हा का कहना है कि टिशू कल्चर के माध्यम से कम स्पेश और कम टाइम में अधिक से अधिक क्लोन तैयार किया जा सकता है। वहीं कीट और रोग मुक्त रहने से पौधों के अंकुरण और विकसित होने का प्रतिशत अधिक होता है।

वानिकी,ऑर्किड, बांस व मेडिसनल पौधे का क्लोन तैयार
संस्थान के अन्य युवा वैज्ञानिकों का भी मानना है कि टिशू कल्चर तकनीक में तापमान को नियंत्रित कर हर मौसम में पौधों का क्लोन तैयार करने में मदद मिलती है और इसके माध्यम से समय पर पर्याप्त संख्या में ना सिर्फ वानिकी पौधे, बल्कि ऑर्किड, बांस और अन्य तरह के मेडिसनल पौधों का भी क्लोन तैयार किया जा सकता है।

कृषि के अलावा वानिकी में भी टिशू कल्चर तकनीक से वन संपदा में वृद्धि
देश में कुछ साल पहले तक कृषि कार्य के लिए ही टिशू कल्चर तकनीक पर बल दिय जाता था, लेकिन अब वानिकी क्षेत्र को भी बढ़ावा देने के लिए टिशू कल्चर के तकनीक से उपयोग से आने वाले समय में ना सिर्फ वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होगी, बल्कि वन संपदा की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

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