योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, आठ घंटे के सामूहिक विशेष दीर्घ ध्यान
रांची। भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक, जन्माष्टमी का पावन दिवस उनके भक्तों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व में अनेक प्रकार से मनाया जाता है। यद्यपि सामान्यतया श्रीकृष्ण की उपासना दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में की जाती है, तथापि अनेक भक्तों के हृदयों में योगेश्वर के रूप में उनका विशेष स्थान है, क्योंकि उन्होंने अर्जुन को योग, भक्ति और वेदान्त के परम सत्यों की शिक्षा प्रदान की थी। श्रीकृष्ण अर्जुन से एक आदर्श योगी (योग ध्यान की वैज्ञानिक प्रविधियों का अभ्यास करने वाले साधक) बनने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं, “योगी को शरीर पर नियन्त्रण करने वाले तपस्वियों, ज्ञान के पथ पर चलने वालों से भी अथवा कर्म के पथ पर चलने वालों से भी श्रेष्ठ माना गया है; हे अर्जुन, तुम योगी बनो!” (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 6, श्लोक 46)
जन्माष्टमी का पर्व हमें इन महान् अवतार के साथ अपने मन और हृदय को समस्वर करने का एक अद्भुत अवसर प्रदान करता है। प्रत्येक वर्ष इस अवसर पर योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) के भक्त योगेश्वर श्रीकृष्ण के सम्मान में लगभग आठ घंटे के सामूहिक विशेष दीर्घ ध्यान में भाग लेते हैं।
योगी कथामृत पुस्तक के विश्व-प्रसिद्ध लेखक, योगानन्दजी ने भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय धर्मग्रन्थ, श्रीमद्भगवद्गीता, पर अपनी अद्वितीय व्याख्या, ईश्वर-अर्जुन संवाद, में अत्यन्त गहनता और स्पष्टता के साथ भगवान् श्रीकृष्ण के संदेश की व्याख्या की है। यह भगवान् श्रीकृष्ण (जो परमात्मा के प्रतीक हैं) और उनके शिष्य अर्जुन (जो एक आदर्श भक्त की आत्मा के प्रतीक हैं) के मध्य एक संवाद है, जो सभी सच्चे साधकों को शाश्वत रूप से प्रासंगिक आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
योगानन्दजी की शिक्षाओं का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ध्यान प्रविधियों की एक व्यापक प्रणाली रू ध्यान का क्रियायोग विज्ञान। आत्मा का यह प्राचीन विज्ञान उच्चतर आध्यात्मिक चेतना और दिव्य साक्षात्कार के आंतरिक आनन्द को जाग्रत करने के लिए शक्तिशाली पद्धतियाँ प्रदान करता है। योगानन्दजी कहते हैं, “श्रीमद्भगवद्गीता में चौथे अध्याय के उन्तीसवें श्लोक में तथा पाँचवें अध्याय के सत्ताईसवें और अट्ठाईसवें श्लोकों में वर्णित तथा श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को सिखाई गई क्रियायोग प्रविधि योग ध्यान का सर्वाेच्च आध्यात्मिक विज्ञान है। भौतिकतावादी युगों के दौरान लुप्त हो गए इस अविनाशी योग को आधुनिक युग के मनुष्य के लिए महावतार बाबाजी ने पुनरुज्जीवित किया और वाईएसएस/एसआरएफ़ के महान् गुरूओं ने इसकी शिक्षा प्रदान की।”
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