रांची। देश के सबसे पुराने राजघराने और बिना कोई संघर्ष, हिंसा या जोरजबस्ती किए उन्नीस सौ साल से भी अधिक समय तक शासन करने वाले रातू पैलेस में करीब 125 वर्षों से बांग्ला रीति रिवाज और आस्था के साथ आज भी दुर्गा पूजा की जा रही है।
देश के सबसे बड़े भूभाग पर सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने वाले शाहदेव राजपरिवार की सदस्य और स्वर्गीय चिंतामणि नाथ शरण शाहदेव की बड़ी पुत्री मंजरी देवी का कहना है कि यह किला राज परिवार का छठा किला है। उन्होंने बताया कि यहां 1895 से बांग्ला रीति रिवाज से पूजा-अर्चना शुरू की गई और पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है।
दुर्गा पूजा के मौके पर रातूं पैलेस में बलि देने की भी परंपरा रही है, यहां राजपरिवार की ओर से तो सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती है जबकि मन्नत मांगने वाले आसपास के सैकड़ों लोगों की ओर से भी यहां बलि दिए जाने की परंपरा रही है। हालांकि कोरोना संक्रमण काल के दौरान इस परंपरा में थोड़ी कठिनाई उत्पन्न हुई है और पिछले वर्ष तो सिर्फ राज्य परिवार की ओर से ही बलि दी गई थी। इस बार की भी संभावना कम ही है कि प्रशासन की ओर से बड़े पैमाने पर बलि देने की छूट दी जाएगी।
रांची ही नहीं, पूरे झारखंड में रातू पैलेस की पूजा भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाराजा प्रताप उदय नाथ शाहदेव की माता लखन कुंवरी देवी को राजबाड़ी में दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए मां भवानी से स्वप्नादेश प्राप्त हुआ था। इसके बाद से ही यहां पूजा का आयोजन होता रहा है। राज परिवार की मौजूदगी में सारे विधि-विधान आज भी पुरानी परंपरा और आस्था के अनुरूप होते है।
मंजरी देवी बताती हैं कि रातू पैलेस में दुर्गा पूजा का आरंभ षष्ठी तिथि से होता है और दशमी को शाम ढलने से पहले ही दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है। यहां बलि देने की भी परंपरा रही है, इस बलि को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है। पूजा के दौरान ही पैलेस आम लोगों के लिए खुलता है और पूजा के दौरान यहां मेला भी लगता है। हालांकि अभी कोरोना संक्रमण के खतरे के मद्देनजर मेला लगाने की अनुमति नहीं दी गयी है।
देश के रियासतों में एक रातू रियासत का कभी रसूख हुआ करता था। कहा जाता है कि प्रथम महाराजा फणि मुकुट राय शक्ति के उपासक थे। उनके कार्यकाल में कलश स्थापना कर पूजा की जाती थी। राजा चिन्तामणि शाहदेव और युवराज गोपालनाथ शाहदेव की मृत्यु के बाद महल की पूजा की जिम्मेवारी बेटियों और वधुओं ने ली है। 2010 में युवराज गोपालनाथ शाहदेव की मौत के बाद सात साल तक यहां सादगी से पूजा होती थी। स्थानीय लोग बताते है कि उस जमाने में दुर्गा पूजा के दौरान रातू पैलेस के राज कर्मचारियों के घर खाना नहीं बनता था। सबके लिए राजमहल में ही खाना बनता था। बड़े-बड़े हांड़ी में खाना तैयार होता था। उत्सव का माहौल रहता था। हर कार्यक्रम में नगाड़ों की आवाज सुनाई देती थी। नगाड़ों की आवाज से ही पूजा की जानकारी कर्मचारियों और रातू के लोगों को मिलती थी। पूजा में नगाड़ा बजाने की परंपरा अब भी है।
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