अधिक देर तक जलेगा और जलने के बाद उर्वरक के रूप में उपयोग संभव
मिट्टी का कटाव रूकेगा, पकाने में ईंधन का भी खर्च नहीं
रांची। दीपावली(Diwali) में रांची (Ranchi) के इटकी प्रखंड के रहने वाले लोगों ने इस बार ना सिर्फ चाइनीज लाइट से दूर रहने का संकल्प लिया है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए गोवर्धन दीया जलाने का निर्णय लिया है।
जेएसएलपीएस से जुड़ी महिला समूह की सदस्यों ने गोबर, मुलतानी मिट्टी और ग्वार गम का उपयोग कर गोवर्धन दीया बनाना शुरू किया हैं। गोवर्धन दीया के बनाने से जहां मिट्टी कटाव पर काफी हद तक अंकुश रह सकेगा, वहीं मिट्टी के दीया को पकाने में जो ईंधन का खपत होता है, उसकी भी बचत हो पाएगी।
जेएसएलपीएस की ईटकी प्रखंड की ब्लॉक प्रोग्राम प्रोग्रार अनुपमा सिन्हा ने बताया कि मिट्टी का दीया प्रारंभ में घी या तेल को सोखता है, लेकिन यह दीया ईंधन को नहीं सोखता है और अधिक समय तक जलता हैं। वहीं जलने के बाद इसका उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में किया जा सकता हैं।
महिला समूह से जुड़ी सबिता सिंह और विनिता देवी ने बताया कि गोवर्धन दीया बनाकर इटकी प्रखंड की 50 से अधिक महिलाओं को रोजगार भी मिला हैं।
गोवर्धन दीया बनाने के काम की शुरुआत में इटकी के पशुपालन पदाधिकारी शिवानंद कांत सिंह का भी बड़ा योगदान रहा। वे बताते है कि क्षेत्र के अधिकांश किसानों के पास गोवंशीय पशु उपलब्ध है और उनकी आय में वृद्धि के लिए इस नये पहल की शुरुआत की गयी हैं।
इटकी के प्रखंड विकास पदाधिकारी गौतम प्रसाद साहू का कहना है कि महिलाआें को सालों भर रोजगार मिले, इसके लिए आने वाले समय में गोबर से ही मेमेंटो, मूर्ति , गमला और अन्य कलाकृतियां बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो।
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