हिन्दी-नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ उनकी रचना में झारखंड की संवेदना सहज झलकती थी
रांची। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गयी। झारखंड के प्रमुख साहित्यकार और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ0 गिरधारी राम गौंझू को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन किया गया। यह सम्मान उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में मरणोपरांत प्राप्त हो रहा है।
डॉ0 गिरधारी राम गौंझू की लेखनी में हमेशा झारखंड की मिट्टी की सुगंध होती थी, पीड़ा होती थी। ‘अखरा निंदाय गेलक’ पलायन पर आधारित उनकी महत्वपूर्ण नाट्य रचना रही है। हिन्दी और नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ उनकी रचना में झारखंड की संवेदना सहज झलकती थी।
5 दिसंबर 1949 में खूंटी के बेलवादाग में जन्मे डॉ0 गिरधारी राम गौंझू का जीवन संघर्षपूर्ण था। प्रारंभिक शिक्षा खूंटी में करने के बाद एमए, बीएड, एलएलबी एवं पीएचडी की शिक्षा दीक्षा ली। उनकी प्रकाशित रचनाओं में कोरी भर पंझरा, नागपुरी गद तइरंगन, खुखड़ी-रूगड़ा शामिल है। नियमित रूप से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहे है। वर्ष 2008 से 2019 तक वह जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष रहे।
अलग झारखंड राज्य आंदोलन के समर्थक रहे गिरधारी राम गौंझू के साथ काम कर चुके झारखंड आंदोलनकारी पुष्कर महतो का कहना है उन्हें झारखंड रत्न सहित कई प्रकार के सम्मान से सम्मानित किया गया था और साधारण कदकाठी वाले डॉ0 गिरधारी राम गौंझू का व्यक्तित्व असाधारण रहा।
शिक्षाविद रहने के साथ ही वे सामाजिक सरोकार से भी निरंतर जुड़े रहे। इसी क्रम में एक बार उनके कुछ सहयोगियों ने चुनाव लड़ने की सलाह दी, जिसके बाद उन्होंने हटिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। चुनाव प्रचार के वक्त जब यह संवाददाता उनसे बातचीत करना पहुंचा, तब उन्होंने कहा था कि वे चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि झारखंड के लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे है।
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