रांची। एक फरवरी 2022 को देश का आम बजट पेश हो रहा है। यह बजट 1 अप्रैल से प्रारंभ हो रहे वित्त वर्ष के लिए होगा जो 31 मार्च 2023 को समाप्त होगा।
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि कोरोना महामारी की पिछली दो लहरों से मार खायी देश की ईकोनोमी जब रिकवर हो रही थी तभी ओमीक्रोन की तीसरे लहर ने पूरी दुनिया के साथ भारत को भी अपनी चपेट मे ले लिया है और इसका संक्रमण अभी जारी है। देश की अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर दौड़ाने और कर्ज बोझ के भार को वहनीय बनाये रखने के लिए बजट के जिस आंकड़े पर सबसे ज्यादा पैनी और उत्सुकता पूर्ण निगाहें होंगी, वह है फिसकल डिफिसिट का प्रतिशत जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट भाषण द्वारा देश को बतायेंगी। आम जनों की भाषा मे फिसकल डिफिसिट का मतलब होता है कि सरकार को बजट के खर्चों को पूरा करने के लिए अपने आय के अलावा और कितना उधार बाजार से लेना होगा।
फिसकल डिफिसिट का आंकड़ा बाजार मे बड़ी संवेदना पैदा करता है। देश दुनिया के निवेशकों की नजर इस पर रहती है। सरकार की वित्तीय स्थिति और वित्तीय प्रबंधन के सूचक इस आंकड़े पर दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों की कड़ी नजर रहती है।
मालूम हो कि चालू वित्त वर्ष 2021-22 के लिए फिसकल डिफिसिट का नम्बर 6.8 प्रतिशत आंका गया है और इसे देश की जीडीपी की तुलना मे मापा जाता है। पिछला बजट पेश करते समय वित्त मंत्री ने 1 फरवरी 2021 को फिसकल कंसोलिडेशन यानी वित्तीय सुदृढ़ता का एक रोडमैप दिया था जिसमें यह बताया गया था कि सरकार के वित्तीय घाटे को मार्च 2026तक कम करके 4.5प्रतशित पर ले आया जायेगा।
सांख्यिकी मंत्रालय ने 7 जनवरी को अपने प्रथम अग्रिम अनुमान मे यह बताया कि चालू वित्त वर्ष मे देश मे लोगों की प्रति ब्यक्ति औसत वास्तविक इनकम घटी है । खपत खर्च अभी भी कोविड पूर्व के स्तर से कमजोर बनी हुई है जिसका देश की जीडीपी मे 56 से 58 प्रतिशत तक का योगदान होता है। ऐसे मे सरकार का यह दायित्व है कि आर्थिक विकास की गति को तेज किया जाय और इसके लिए सरकार को बजट मे खर्च बढ़ाने की जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था मे जो मुश्किलें हैं उन्हें समझना जरूरी है। जीडीपी की तुलना टैक्स कलेक्शन का प्रतिशत कम है और इसके विपरीत कर्जबोझ का प्रतिशत जीडीपी की तुलना मे कोरोना महामारी के वर्षों मे 90प्रतिशत हो गया है। जबकि पिछले दो दशकों से कर्ज और जीडीपी का रेशियो 70 के आसपास ही रहा था।
कर्ज की वहनीयता काफी मंहगी होती है। बजट मे सरकार के कुल खर्चों मे ब्याज मद पर होने वाला खर्च 20 प्रतिशत से ज्यादा होता है और यह धीरे धीरे बढ़ता ही जाता है। ऐसे में सरकार के समक्ष कर्ज बोझ को कम रखने और ग्रोथ को गति देने के लिए पूंजीगत मद मे खर्च की बढाने की जरूरत के बीच में एक बेहतर संतुलन की जरूरत होगी। मेरा मानना है कि फिसकल डिफिसिट पिछले बजट की तुलना मे 0.5 से 1प्रतिशत तक कम करके इसे 5.8से6.3प्रतिशत रखना चाहिए । मालूम हो कि 6 प्रतिशत का फिसकल डिफिसिट बजट मे 12से 13 प्रतशित तक खर्च बढ़ाने का स्कोप देता है जो कि एक संतुलित बढ़ोतरी होगी।
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