January 12, 2025

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264 ‘‘लिव इन कपल्स’’ की परंपरागत रीति-रिवाज के साथ हुई शादी

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ढुकू परंपरा के तहत युवतियां अपने जीवन साथी के घर ढुक जाती हैं, लेकिन महीनों-वर्षाें तक साथ रहने पर भी नहीं मिल पाती है सामाजिक मान्यता
जीवन यापन कर रहे 264 जोड़ों का कराया गया सामूहिक विवाह

रांची। झारखंड के आदिवासी और दलित बहुल इलाके में बड़ी संख्या में युवक-युवती शादी-विवाह का खर्च उठाने में असमर्थ रहते है और बगैर शादी किये साथ में रहते है। महीनों और वर्षाें तक साथ रहने वाले इन दंपतियों के बच्चे भी हो जाते हैं, लेकिन इन्हें सामाजिक मान्यता नहीं मिल पाती है। ऐसे ही 264 जोड़ों का रविवार को खंूटी के फुटबॉल स्टेडियम में परंपरागत विधि-विधान सामूहिक विवाह कराया गया। इसका आयोजन खूंटी जिला प्रशासन, निमित्त संस्था और भारत सरकार के उद्यम राइट्स लिमिटेड के सहयोग से हुआ।

ढुकू विवाह को नहीं मिल पाती है सामाजिक मान्यता
बिना शादी किये महीनों-वर्षाें से साथ रह रहे जोड़े की पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ शादी कराने वाली निमित्त संस्था की निकिता सिन्हा बताती है कि आदिवासी और दलित बहुल रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा और गुमला समेत कई जिलों में युवतियां आर्थिक कठिनाईयों की वजह से ही सामाजिक रीति-रिवाज से शादी किये बिना अपने जीवनसाथी के साथ रहने लगती है। ऐसे लिव इन कपल्स को ग्रामीण ढुकू विवाह कहते हैं, परंतु कभी इन्हें सामाजिक मान्यता नहीं मिलती, जिसके कारण इस तरह के परिवार और उनके बच्चों को कई तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ढुकू परंपरा के तहत साथ रहने वाले जोड़ों को समाज में सम्मान के दृष्टि से नहीं देखा जाता है और उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में भी कई सामाजिक रुकावटें आड़े आती हैं। उनकी संस्था की ओर से ऐसे जोड़ों को चिह्नित कर उनके धर्म के अनुरूप पारंपरिक रीति-रिवाज से शादी करायी जा रही है। इस वर्ष 1320 जोड़ों की शादियां कराने का निर्णय लिया गया है। आज 264 जोड़ों की शादी हुई है, जबकि 26-27 फरवरी और 5-6 मार्च को भी एक हजार से अधिक जोड़ी की शादियां करायी जाएगी।

सरना और ईसाई विधि-विधान से हुई शादी
निमित्त संस्था की ओर से खूंटी जिले में गांव-गांव का सर्वे कर ढुकू परंपरा से रह रहे दंपतियों का रजिस्ट्रेशन कराया गया और सरना आदिवासी तथा ईसाई विधि विधान से सभी की शादी करायी गयी।  समारोह के दौरान सामूहिक रूप से कन्यादान कर वर-वधु को आशीर्वाद दिया गया। सामूहिक विवाह की रस्म अदा करने के लिए सरना धर्म से पहान की भूमिका के लिए महिला पहान और चर्च से महिला पादरी को आमंत्रित किया गया था। इस विवाह समारोह में कई जोड़ों के छोटे-छोटे बच्चे भी थे, जबकि कुछ दंपतियों के जोड़े बच्चे भी बड़े नजर आये।

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