डॉ एन कृष्णकुमार ने झारखण्ड के विकास में प्रोडक्टिविटी और सस्टेनिबिलिटी पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही
रांची । बीएयू के कृषि संकाय स्थित प्रेक्षागृह में विख्यात कृषि वैज्ञानिक एवं पूर्व आईसीएआर – उपमहानिदेशक (उद्यान) डॉ एन कृष्णकुमार का उद्यान महाविद्यालय के विद्यार्थियों हेतु विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. मौके पर कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने डॉ कृष्णा कुमार के बारे में बताया कि तमिलनाडु वासी डॉ कुमार काफी बढ़िया हिंदी बोलते है. कीट विज्ञान विशेषज्ञ होने के बावजूद कृषि क्षेत्र के सभी विषयों का इन्हें अपार ज्ञान है. उद्यान विद्यार्थियों को इनके प्रेरक मार्गदर्शन से काफी सीखने और अनुभवों का लाभ लेने का यह बेहतर अवसर है.
अपने व्याख्यान में डॉ कृष्णकुमार ने विद्यार्थियों से लंबे जीवन में सीखे गए सबक, कठिनाईयों का सामना एवं भावी कार्यक्रमों से सबंधित अनुभवों को साझा किया. कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के योगदान से भारत खाद्यान्न मामले में आत्म निर्भर है और अनेकों देशों को खाद्यान्न निर्यात कर रहा है. अनेकों पड़ोसी देशों के समक्ष मुल खाद्यान वस्तुओं की उपलब्धता का संकट है. भारत के आर्थिक विकास में कृषि का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान होने के बावजूद कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है. कोरोनाकाल में भी कृषि क्षेत्र देश का प्रमुख आर्थिक आधार स्तभ बना रहा. जिसे देख देश के युवा पीढ़ी के हित में कृषि विकास की दिशा में पूरे देश में प्रतिबद्धता दिखाने और प्राथमिकता देने की आवश्यकता है.
विकास के मामले में केरल एवं पंजाब राज्य का देश का अव्वल राज्य है. पंजाब ने प्रोडक्टिविटी पर ध्यान केन्द्रित की. निरंतर प्रोडक्टिविटी के प्रयासों ने पंजाब के समक्ष अनेकों विकट संकट पैदा कर दी है. जल स्तर में तेजी से गिरावट, भूमि का बंजर होना, खाद्यान्न की गुणवत्ता में कमी आदि अनेकों समस्यायें देखने को मिली है. जिसकी वजह से राज्य में फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री फ़र्टिलाइज़र की मांग होने लगी है. वहीं केरल राज्य ने सस्टेनिबिलिटी पर ध्यान केन्द्रित किया. सस्टेनिबिलिटी बनाये रखने हेतु आधुनिक विकास से दूरी बनाये रखी. लोगों के आजीविका एवं पोषण सुरक्षा तथा जीवन के हरेक बेहतर संकेतक पर कार्य किया. नतीजन केरल में साक्षरता दर सबसे अच्छी है और लोगों का जीवन स्तर बेहतर है. इससे झारखण्ड राज्य को सबक लेते हुए राज्य के विकास में प्रोडक्टिविटी एवं सस्टेनिबिलिटी को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है.
भविष्य के लिए सस्टेनिबिलिटी डेवलपमेंट हेतु आजीविका एवं पोषण सुरक्षा पर ध्यान देना होगा. आज अधिकतम प्रोडक्टिविटी और उपयोग के साथ भावी संभावनाओं की उपलब्धता को प्राथमिकता देनी होगी. धरती और प्रकृति हमें सबकुछ देती है. हर रोज इससे हम लाभान्वित होते है. इसके संरक्षण के लिए भूमि के स्वास्थ्य एवं जैव विविधता पर ध्यान देना होगा. जरूरत के मुताबिक ही उपयोग करने और अत्यधिक दोहन से बचना होगा.
देश में प्रचुर खाद्यान्न होने के बावजूद बहुतायत आबादी हेतु पोषण सुरक्षा विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या है. आजादी के समय प्रति व्यक्ति प्रोटीन की खपत 65 ग्राम थी, जो आज घटकर 40 ग्राम हो गयी है. बहुतायत आबादी देशी शाक – सब्जी एवं देशी तेलहनी फसलों से विमुख हो रही है. देश में 55 प्रतिशत पाम आयल की खपत है, जो दुसरे देशों से आयात करना पड़ता है. आधुनिक जीवन शैली में पाम आयल के सेवन पर निर्भरता से अगले 25 वर्षाे में कही अधिक मांग होगी. देश एवं कृषि वैज्ञानिकों को इस दिशा में अलग हटकर सोचने एवं दिशा देने की आवश्यकता है. कृषि विश्वविद्यालय, वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों को पोषण युक्त देशी शाक दृ सब्जी, दलहनी एवं तेलहनी फसलों के अनुसंधान में फोकस करने की जरूरत है.
विद्यार्थियों के लिए जीवन सीखने की प्रक्रिया है. विद्यार्थी आराम से बचें. बुद्धिमत्ता और ज्ञान के प्रति निरंतर प्रयत्नशील रहे. सांख्यिकी, जीव रसायन एवं सुचना प्रौद्योगिकी जैसे कठिन विषयों का अध्ययन विद्यार्थियों के भावी जीवन में बेहद उपयोगी साबित होगी. जीवन में ग्रास रूट स्तर से जुड़े रहने से काफी उपयोगी अनुभव प्राप्त होगा. जीवन में सफल होने के लिए शिक्षकों/ वरीय/ अग्रज और पारिवारिक मूल्यों का सम्मान जरूरी है.
स्वागत डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल तथा धन्यवाद डॉ एके तिवारी ने दी. मौके पर डॉ जगरनाथ उराँव, डॉ एमएस मल्लिक, डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ सोहन राम, डॉ एस कर्माकार, डॉ बीके अग्रवाल, डॉ पीबी साहा, ई डीके रूसिया, डॉ एस मिश्र, डॉ पी महापात्र, डॉ अरविन्द कुमार, डॉ नीरज कुमार, डॉ अमित कुमार आदि सहित उद्यान महाविद्यालय के करीब 100 छात्र – छात्राएँ मौजूद थी
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