भारत निर्वाचन आयोग के फैसले के पहले हर परिस्थिति से निपटने को लेकर रणनीतिकारों के साथ हेमंत सोरेन ने घंटों शिबू सोरेन से चर्चा की
रांची। भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट तथा लोक प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन मामले में सुनवाई पूरी कर ली है और अब सभी को फैसले का इंतजार है। चुनाव आयोग के फैसले के पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने करीबी रणनीतिकारों के साथ घंटों गुफ्तगू की और फिर दोपहर में झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख और अपने पिता शिबू सोरेन से मिलने पहुंचे। हेमंत सोरेन ने पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन को चुनाव आयोग के हर संभावित फैसले से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से अवगत कराया। सीएम हेमंत सोरेन चाहते है कि पार्टी में एकजुटता बनाये रखने और संगठन के अंदर किसी भी तरह के अंर्तद्वंद से बचने के लिए शिबू सोरेन की सहमति प्राप्त कर ली जाए। जेएमएम के अंदर फिलहाल पार्टी के सभी विधायक उनकी काफी इज्जत और सम्मान करते है। ऐसे में हेमंत सोरेन चाहते है कि अगले किसी भी वैकल्पिक कदम की घोषणा शिबू सोरेन के मुख से ही, ताकि किसी तरह के विरोध की कोई गुंजाईश ना रह गये।
सदस्यता समाप्त होने की स्थिति में सीएम पद परिवार में रखने पर चर्चा
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सरकार के क्राइसिस मैनेजरों ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में विधानसभा सदस्यता समाप्त होने की स्थिति में सभी विकल्पों पर विचार शुरू कर दिया है। हेमंत सोरेन चाहते है कि उनके पद छोड़ने की स्थिति में ही सीएम का पद परिवार के पास ही रहे। ऐसे में हर संभावना पर चर्चा की जा रही है। हेमंत सोरेन की जगह शिबू सोरेन को सीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने पर ना सिर्फ पार्टी के अंदर, बल्कि गठबंधन में भी किसी तरह का कोई सवाल नहीं उठेगा, परंतु जिस तरह से आय से अधिक संपत्ति मामले में 25 अगस्त को दिल्ली लोकपाल ने उन्हें तलब किया है,वैसे में पार्टी हर कदम फूंक-फूंक कर उठा रही है। हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन के नाम पर भी विचार किया गया, लेकिन हाल के दिनों में उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह रहा है। ऐसे में हेमंत सोरेन की भाभी और जामा की विधायक सीता सोरेन के नाम की भी चर्चा हो रही है। लेकिन एक ही घर में दो पावर सेंटर बनने से उत्पन्न होने वाले खतरों के मद्देनजर इस बात की संभावना कम ही नजर आ रही है कि सीता सोरेन के नाम पर हेमंत सोरेन सहमत होंगे। वहीं शिबू सोरेन के छोटे पुत्र विधायक बंसत सोरेन की विधानसभा सदस्यता भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में खतरे में नजर आ रही है। इस तरह अंत में सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन के नाम पर ही सहमति बनने की संभावना बनाने की कोशिश की जा रही है।
कल्पना के ओडिशा मूल के रहने आने वाली परेशानियों पर हो रही चर्चा
सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन मूल रूप से ओडिश की रहने वाली है। ओडिशा मंे ही उनका परिवार अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आता है, लेकिन आरक्षण का मसला जिस तरह से स्टेट बदलने से प्रभावित होता है, वैसी स्थिति में यह भी देखा जा रहा है कि कल्पना सोरेन के सीएम बनने की स्थिति में उन्हें किस सीट से चुनाव लड़ाना बेहतर होगा, वह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ सकेगी या नहीं। इन सभी परिस्थितियों पर रणनीतिकार चर्चा कर रहे है।
इस्तीफा देकर फिर चुनाव लड़ने के विकल्प पर भी विचार
भारत निर्वाचन आयोग की ओर से सीएम हेमंत सोरेन की सिर्फ विधानसभा सदस्यता रद्द की जाती है, तब भी उनके लिए कोई खास परेशानी नहीं होगी। वे इस्तीफा देकर फिर से बरहेट विधानसभा उपचुनाव लड़ कर वापस आ सकते है। लेकिन हेमंत सोरेन के करीबी रणनीतिकारों को यह अंदेशा भी सता रहा है कि यदि चुनाव आयोग द्वारा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा के साथ ही छह वर्ष तक हेमंत सोरेन के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी जाती है, तो उनके लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। यही कारण है कि हेमंत सोरेन के करीबियों की कोशिश है कि उनके पद छोड़ने की स्थिति में कल्पना सोरेन को ही यह जिम्मेवारी सौंपी जाए।
सदस्यता रद्द नहीं पर देशभर में परंपरा बनने की संभावना
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा सीएम हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले मंे इस सप्ताह फैसला ले लिये जाने की संभावना जतायी है। वहीं जानकारों का यह भी कहना है कि यदि इस मामले में हेमंत सोरेन की सदस्यता बच जाती है, तो इसी फैसले का हवाला देते हुए आने वाले में झारखंड समेत देशभर में सीएम या मंत्री रहते हुए खनन लीज लेने की परंपरा बन जाएगी। साथ ही सत्ता में रहने वाले लोगों के लिए यह काफी आसान काम हो जाएगा और उनके समक्ष कोई बाधा नहीं रह जाएगी।
राज्यपाल दिल्ली का दिल्ली दौरा
चुनाव आयोग के फैसले के पहले राज्यपाल रमेश बैस के दिल्ली दौरे को भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दिल्ली में वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर सकते है। बताया जा रहा है कि भारत निर्वाचन आयोग की ओर से इस मामले में अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को ही सौंपी जाएगी। ऐसे में आने वाले समय में राज्यपाल की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होगी।
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