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जनजातीय समुदाय दीपावली के दूसरे दिन से शुरू होकर पौष माह तक यह पर्व मनाते हैं।
रांची। पशुधन के सम्मान और उसकी रक्षा के संकल्प और नई फसल के घर में आने की खुशी (happiness of coming home of the new crop)का पर्व है सोहराय (Sohrai)। दीपावली के दूसरे दिन से शुरू होकर पौष माह तक यह जनजातीय समुदाय के द्वारा मनाया जाता है।
सामाजिक कार्यकर्त्ता बंदी उरांव दीपावली बीतते ही जनजातीय परिवारों द्वारा सोहराय जतरा मनाने का सिलसिला शुरू हो गया है, ..जो पौष महीने तक चलेगा। यह घर में नई फसल आने का उत्सव तो है ही, साथ ही, पशुधन की रक्षा के संकल्प और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम भी है।
लोक कलाकार सरिता कच्छप का कहना है कि सोहराय के मौके पर घर की साफ-सफाई के बाद गायों को स्नान कराकर उनकी विधिवत पूजा की जाती है। महिला-पुरूष मिलकर नाचते-गाते हैं।
वहीं लोक कलाकार मुकुंद नायक बताते है कि सोहराय के उत्सव, उससे जुड़ी परंपरा और सामाजिक जीवन में उसके महत्व को जनजातीय गीतों में लिपिबद्ध किया गया है।लोक कलाकार जब इसे स्वर देते हैं और उसपर थिरकते हैं, तो एक अलग ही समाँ बँध जाता है, ..और सुनने वालों के कानों में मिश्री घोलता है।
समय के साथ हल-बैलों की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। वैश्वीकरण के दौर में तकनीकों की उपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन, हमारी परंपरा और संस्कृति अक्षुण्ण रहे, यह भी जरूरी है।
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