रांची। झारखंड विधानसभा में वित्तमंत्री डॉ0 रामेश्वर उरांव ने भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का झारखंड में जिला अस्पतालों के परिणामों पर प्रतिवेदन की प्रति को सभा पटल पर रखा। यह रिपोर्ट 31 मार्च 2019 को समाप्त हुए वर्ष के लिए रखा गया हैं। इस रिपोर्ट में कई गड़बड़ियों का खुलासा हुआ हैं।
कैग रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाओं में गुणवततापूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए पर्याप्त और उचित रूप से अनुरक्षित भवन अवसंरचना का अत्याधिक महत्व हैं, लेकिन जांच में अस्पताल की भवन अवसंरचना की उपलब्धता और निर्माण में अपर्याप्तता तथा कर्ठ कमियां उद्घाटित हुई। रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 और 2018-19 के दौरान नमूना जांच जिला अस्पतालों में आवश्यक विस्तरों की कमी क्रमशः 61 और 88 प्रतिशत तथा 57 और 86 प्रतिशत के बीच थी। ये कमी जनसंख्या में वृद्धि की गति के साथ अतिरिक्त बिस्तरों की स्वीकृति नहीं देने के कारण थी। रामगढ़ जिला अस्पताल के लिए 4.89 करोड़ की लागत से एक नया 100 बिस्तरों वाला अस्पताल भवन स्वीकृत जून 2008 में किया गया था, लेकिन 3 करोड़ के व्यय के बाद निर्माण कार्य में लगे अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के कारण निर्माण कार्य जून 2012 में रुक किया और कार्य प्रारंभ नहीं हुआ। जिला अस्पताल रामगढ़ अप्रैल 2016 से मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्र में भवन में कार्यरत था।
कैग रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि वर्ष 2014715 की तुलना में 2018-19 में बाह्य रोगी विभागों, ओपीडी में रोगी भार में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। ओपीडी में रोगियों संख्या में वृद्धि के बावजूद प्रत्येक ओपीडी क्लिनिक एक ही चिकित्सक द्वारा चलाया जा रहा था, जिससे प्रति चिकित्सक प्रति दिन रोगी भार में वृद्धि होती हैं।
वहीं जिला अस्पतालों में मौजूदा मानकों और मानदंडों के अनुसार आवश्यक रेडियोलॉजिक तथा पैथोलॉजिक उपकरण सभी प्रकार की पैथोलॉजिकल जांच एवं आवश्यक मानव बल की उपलब्धता की कमी भी उजागर हुई हैं। इसके अलावा जिला अस्पतालों में बर्न वार्ड और गला, ईएनटी, दुर्घटना एवं ट्रामा वार्ड के साथ-साथ मनश्चिकित्सा के लिए आतंरिक सेवाओं की उपलब्धता में महत्वपूर्ण कमियां हैं।
कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि छह जिला अस्पतालों में 19 से 56 प्रतिशत चिकित्सकों की कमी हैं। जबकि 9 से 18 प्रतिशत विशेषज्ञों की भी कमी थी। पारा शिचिकित्सकों की कमी 43 से 77 प्रतिशत के बीच थी , जबकि स्टॉफ नर्सों की कमी 11 से 87 प्रतिशत के बीच थी।
रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2016-17 के बीच 23 में से केवल 9 जिला अस्पतालों में आईसीयू की स्थापना की गयी थी। वहीं 5 जिलों को छोड़ कर पृथक दुर्घटना एवं ट्रॉमा वार्ड उपलब्ध नहीं थे।
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