कभी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए जाने के वास्ते नहीं होता था पैसा, मां ने पहली बार आस-पड़ोस और रिश्तेदारों से उधार लेकर बांस से बने तीर-धनुष खरीद कर दी
रांची। 40वीं सीनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता(40th National Archery Championship) में स्वर्ण जीतने वाली दीप्ति कुमारी (Dipti Kumari)की कहानी भी कई अन्य खिलाड़ियों की तरह काफी संघर्षपूर्ण है। राष्ट्रीय चैंपियन बनने वाले दीप्ति के पिता केईनाथ महतो सवारी गाड़ी के ड्राइवर है और वे प्रतिदिन अपनी गाड़ी पर बैठा कर दिहाड़ी मजदूरों को जोन्हा (Jonha)से 40किमी दूर राजधानी लाने और ले जाने का काम करते है।
दीप्ति की मां सोमती देवी गृहिणी है और वह बताती है जब उनकी बेटी ने 2013 में पहली बार धनुष खरीदने की जिद की, तो आसपास के लोगां और अन्य रिश्तेदारों से उधार लेकर अपनी बेटी के लिए बांस का तीर-धनुष खरीदा था।
दीप्ति का कहना है कि इस प्रतियोगिता में कोमोलिका और दीपिका कुमारी जैसी खिलाड़ियों को पराजित कर पदक जीतने से उसका हौसला बढ़ा है और अब उसका लक्ष्य विश्व कप तीरंदाजी तथा ओलंपिक पदक हासिल करने का है।
दीप्ति की छोटी बहन लक्ष्मी कुमारी भी तीरंदाजी का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है और वर्ष 2018 में इंडियन राउंड अंडर-9 में चैंपियनशिप का खिताब हासिल किया है। अब उसका सपना भी अपनी बड़ी बहन की तरह देश के लिए खेलना और स्वर्ण पदक जीतना है।
दीप्ति के पास कभी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के वास्ते जाने के लिए पैसे नहीं होते हैं और आसपास के लोगों सहयोग तथा कोच की सहायता से वह अपना सफर पूरा करती थी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी है और खेल के क्षेत्र में अच्छा करने की वजह से उसे आईटीबीपी में खिलाड़ियों के कोटे से नौकरी भी मिल चुकी है।
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